मनरेगा कार्मिक शर्म करो! २१, २२ फरवरी २०१३ भारत बंद करो!
हम मनरेगा कर्मचारियों के लिए बहुत ही शर्म की बात है कि जब हमारे लगभग ५ हजार मनरेगा साथी ११, १२ और १३ फरवरी २०१३ को जंतर-मंतर नई दिल्ली में तीन दिवसीय धरने पर थे. ठीक उसी समय हमारे बहुत से साथी चंद पैसों की खातिर अपने कार्यालयों में बैठकर कुर्सियां तोड़ रहे थे. एक तरफ अधिकार और हक़ के लिए हमारे कुछ साथी भूखे-प्यासे जंतर-मंतर पर समय, सरकार और सिचुएशन से जूझ रहे थे, दूसरी तरफ हमारे बहुत से साथी अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए इन ५ हजार मनरेगा कर्मचारियों की मेहनत पर पानी फेरने का काम कर रहे थे. एक तरफ हमारे कुछ साथी मनरेगा कर्मचारियों के हक़ और आधिकार के लिए रणनीति बना रहे थे तो दूसरी तरफ हमारे बहुत से साथी वैलेंटाइन डे मनाने की तैयारी कर रहे थे. एक तरफ कुछ लोग हक़ और अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो दूसरी तरफ बहुत से लोग अपने घरों में बैठकर अपनी-अपनी बीबियों के चूड़ियाँ गिनने में लगे हैं. फिर भी भारत के इतिहास में हमारे कुछ मनरेगा साथियों द्वारा ११, १२ और १३ फरवरी २०१३ जंतर-मंतर पर किये गए धरने को युगों-युगों तक याद किया जायेगा और याद किया जायेगा प्रथम प्रयास में मिली इस धरने की सफलता को जिसका परिणाम यह निकला कि केंद्र सारकार बाध्य हुई हमसे २१, २२ फरवरी, २०१३ को वार्तालाप के लिए. यदि अब भी अपने घरों और कार्यालयों में स्वार्थ और चैन के नशे में चूर हम मनरेगा कर्मचारियों में शर्म बाकी रह गयी है तो अखिल भारतीय मनरेगा कर्मचारी संघ द्वारा २१, २२ फरवरी २०१३ को मनरेगा कार्य ठप करने के आह्वान का समर्थन करते हुए हम सभी पुरे भारतवर्ष के सम्पूर्ण मनरेगा कर्मचारी अपने-अपने कार्यालयों पर मनरेगा कार्यों को इन दो दिनों में बहिष्कृत करते हुए जिले पर धरना प्रदर्शन करते हुए अखिल भारतीय मनरेगा संघ द्वारा लिए गए इस निर्णय को सफल बनाये. अंत में आप सभी मनरेगा कर्मचारी साथियों को ‘दुष्यंत कुमार’ के इन पक्तियों के साथ आह्वान करना चाहूँगा………..
तुम्हारे पावों के निचे कोई ज़मीं नहीं, कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीं नहीं. मैं बेपनाह अँधेरा को सुबह कैसे कहूँ, मैं इन नज़रों का अँधा तमाशबीन नहीं. तुझे कसम है खुदी को बहुत हलाक न कर, तू इस मशीन का पुर्जा है, तू मशीन नहीं.
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