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जागो और उठो!

मनरेगा कार्मिक जागते रहो!
मनरेगा कार्मिक जागते रहो!
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मनरेगा कार्मिक जागते रहो!
मनरेगा कार्मिक जागते रहो!

कहते हैं दर्द का हद से गुजर जाना है दवा हो जाना, धरती की प्यास हद से गुजर जाए तो आसमान भी फट जाता है, इंसान की चाहत में असर हो तो ख़ुदा भी जमीं पर उतर आता है, हाथों में कारगरी हो तो बेजान पत्थर भी बोल उठते हैं, और आशिकों की बात मत पूछों यदि …किसी पत्थर की मूर्त को होठों से छू ले तो उनमे भी जान आ जाती है. ऐसा ही कुछ हम मनरेगा कर्मचारी है जो बिना थके हारे दिन-रात परिश्रम करके गावों की रीढ़ की हड्डी तैयार करने में लगे हैं. जिसकी वजह से हमारे मजदुर भाइयों के एक परिवार को प्रत्येक साल अपने ही गाँव में १०० दिन का रोजगार आसानी से मिल जाता है और साथ ही गावों का नव निर्माण हो रहा जिसके अंतर्गत तालाबों, सडकों और पौधारोपण इत्यादि का काम सुचारू और सफलता पूर्वक किया जा रहा है. गावों में एक बार फिर नई जान आ गयी है चारो तरफ खुशहाली और हरियाली का माहौल है. हमारे प्रयासों और कार्यों के बदौलत दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार सृजन योजना का सुचारू रूप से क्रियान्वयन किया जा रहा है. परन्तु हम कर्मचारियों के जीवन में अँधेरा और बदहाली के सिवा कुछ नहीं. वेतन की जगह पर हमें मानदेय से गुजारा करना पड़ता है और वो भी २००५ से एक ही मानदेय पर जबकि महंगाई २००५ की अपेक्षा ढाई गुनी हो गयी है. समय-समय पर शासन को अपनी समस्याओं से अवगत कराने के बावजूद अब तक हमें उपेक्षा और निराशा का सामना करना पड़ रहा है.
अतः हम मनरेगा कार्मिक वेलफेयर एसोसियेशन, आजमगढ़ के कर्मचारी सभी मनरेगा कार्मिक भाइयों का आह्वान करते हैं कि अब समय आ गया है एक साथ एक स्वर में अपने मौलिक अधिकारों के लिए आवाज़ लगाने की ताकि गूंगी और बहरी सरकार के कान के परदे खोल जा सके और बताया जा सके कि यदि वो हमारी मांगों को युहीं अनसुनी करती रही तो हम सब एक स्वर में आवाज़ लगाकर सरकार के खेमे ऐसा अनुनाद पैदा करेंगे जिससे सरकार जिस ढांचे पर खड़ी है उसे मिटटी में मिलते देर नहीं लगेगी.
गूंगी और बहरी सरकार तक अपनी आवाज़ पहुँचाने और अपने सोये हुए मनरेगा कार्मिक भाइयों को जगाने के लिए हम दैनिक जागरण की वेब साईट जागरण जंक्शन पर “मनरेगा कार्मिक जागते रहो !” नामक ब्लॉग से अवतरित हो रहे हैं…………….आप सभी से सहयोग अपेक्षित है!
                                                                             – मनरेगा कार्मिक वेलफेयर एसोसियेशन, आजमगढ़..

 

 

 

 

नरेगा कार्मिक,

जागो और उठो!

यह वक्त नहीं इंतज़ार का,
यह सन्नाटा है बेकार का.

तुम्हारे मेहनतों की बदौलत
बदली तस्वीर हर गाँव की,
फावड़ा और कुदाल की.

तुम्हारे मेहनतों की बदौलत
चारो ओर हरियाली है,
घर-घर फैली खुशहाली है.
कहीं सडकों पर रफ़्तार है,
कहीं पोखरों में जल की फुहार है.

तुम्हारे मेहनतों का सिला,
कुछ मिला ऐसा,
एक रोज भी जल न पाया,
तेरे घर का चूल्हा.
कोनें में टूटी चारपाई,
आँगन में गड्ढे और खाई.

तुम्हारे मेहनतों का सिला,
कुछ मिला ऐसा,
तेरे घर की बगिया सुख रही,
सारी खुशियाँ लुट रही.
तेरा अधिकार तुझसे छुट रहा,
फिर भी तू चुप रहा.

यह वक्त नहीं ऐतवार का,
यह वक्त है हाहाकार का.

जागो और उठो!


अनिल कुमार “अलीन”

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